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जब बात जनता की होती है तो हमारे नेता भली भली बाते करते है लेकिन कम पुजीपतियो और विदेशी मल्टीनेशनल कम्पनियो के हित में ही करते है, और इस मामले में वर्तमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने बेशर्मी की साडी हदे पर कर ली है.करीब २०००० लोगो की मुओत और ५,७४,३७८ लोगो को शिकार बनाने भोपाल गैस त्रसदी पैर मीठी मीठी बातो की झड़ी लगते अमेरिका परस्त हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा की अपने हमवतनो के प्रति हमारा फर्ज है की हम ऎसी प्रक्रुयाये अपनाये और एतिहासी इंतजाम करे की ऐसी त्रासदी फिर कभी न आय उन्होंने सफाई ,मेडिकल और इस दुर्घटना से जुड़े किसी भी मसले को निपटने के प्रति अपने सर्कार की प्रतिबधता दोहरीलेकिन यह त्रसदी इतनी भीषद थी की हमारी सामूहिक अन्तेरात्मा को अब भी कुरेदती है.लेकिन इस मामले में भी कथनी और करनी का विरोधाभास ही दिखाए देता है. जो हेर मामलेमे जनता को धोखा देता है.यह भी ऍम मसलो की तरह गरीबो के विरुध पुजीपतियो के हक में दीखता है.केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने दो विधेयक टायर कराया है जिसका नाम है परमदु जबाब देही विधेयक जो परमदुदुर्घटना होने पैर मुआवजा भुगतान के सम्बन्ध में है.इसे देख केर ऐसा लगता हा की हमारी सर्कार ने कोई सबक नहीं लिया है.वह दिखावा केर रही है जैसे उसे अपने नागरिको की कितनी चिंता है.जब की वास्विकता यह है की १९८४ ले भोपाल गैस त्रासदी केपिदितो को मुआवजा के लिए ३ अरब डालर का मुआवजा ठोकने के बाद ४.७ अर्ब डालर पैर सम्झुओता केर लिया था और किसी तरह की कार्यवाही करने से न करने का जो कम किया उसे इस विधेयक के माध्यम से क़ानूनी जमा पहनने का कम सर्कार केर रही है.इस विधेयक में यह प्रव्द्हम किया गया है भारत में परमदु रिएक्टर लगाने और परमदु उर्जा से सम्बन्धित सोली करने वाली विदेशी कंपनियो की दुर्घटना होने पैर कोई जिमेदारी हाही बनेगी अगर कोई जिमेदारी बनेगी तो उन भारतीय सार्वजनिक कंपनियो की जिनके साथ मिल केर कार्य केर रही होगी और मुआवजे ली रकम भी बहुत कम २३०० करोड़ रुपये तय की गयी है और उसमे भी विदेशी लम्पनियो को सिर्फ ५०० करोड़ ही देने होगे बाकि पैसा टैक्स जमा करने वाली जनता की जेब से जायेगा.यह विधेयक डिजाईन और निर्मद में कोई खामी होने पैर भी उन कम्पनियो को जिमेदारी से बच निकलने की छुट देता है.दुनिया के इतिहास में परमदु उर्जा सबसे बड़ी विफलता साबित हो चुकी है.१९६० में पेरिस समेलन में परमदु उर्जा का जोर सर से प्रचार किया गया और कहा गया की भविष्य में उर्जा का मुख्या स्रोत यही होगा लेकिन ये बाते सपना ही रह गयी संभावित उत्पादन का १०% भी बढ़ोतरी नहीं हुयी अमेरिका में १९७३ के बाद कोई रिएक्टर नहीं लगाया गया.आस्ट्रलिया जो उरेनियम का सबसे बड़ा उत्पादक है,वह एक भी परमदु रिएक्टर नहीं है.रूस में भी १९८६ के दुर्घटना के बाद कोई रिएक्टर नहीं लगाया गया.इन परिस्थितियो में जनता को दबाव बना केर इस मानव द्रोही विधेयक का विरोध करना होगा.पूरी दुनिया में परमदु उर्जा का प्रतिशत घटता जा रहा है जब की सुरचित और सबसे सस्ती पवन उर्जा सौर उर्जा का उत्पादन २०% की दर से बढ़ रहा है.
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