Menu
blogid : 1695 postid : 33

आखिर क्यों मुलायम से सोनिया को परहेज ?

TARK
TARK
  • 9 Posts
  • 6 Comments

मुलायम सिंह का दुर्भाग्य हैकि इतने विशाल जनसमर्थन और जनाधार वाले नेता होने के बाद भी सिर्फ सोनिया के नाराजगी की वजह से राष्ट्रिय राजनीत में कोई खास हसियत नहीं बन पाई जब की चार सदस्यों वाले दल भी सत्ता की मलाई खा रहे है क्या इसकी वजह सोनिया को बाजपाई सर्कार के वोते से गिरने के बाद सोनिया गाँधी के २७२ सांसदों के समर्थन की हवा निकलना का खामियाजा भुगतना पद रहा है क्यों की सोनिया को कांग्रेसी चपुसो ने इतना निरंकुस बना दिया हैकि उन्हें न तो जनता के भावनाओ का ख्याल रह गया है और न ही उनके समर्थन से पिचली सर्कार बचाने की कोई अहमियत. यह सोनिया की तानाशाही ही कही जाएगी की राजनीत में व्यक्तिगत अग्र्न्दा का घालमेल उनके द्वारा किया जा रहा है.कहा जाता हैकि राजनीती में न कोई किसी का स्थाई दोस्त होता है न दुश्मन.लेकिन सोनिया के लिए इस तरह की परम्पराव का कोई मतलब नहीं तो जिस राष्ट्रिय सलाहकार परिषद् से बेआबरू हो केर रुखसत हुई थी और स्तीफा देने के बाद दुबारा चून्न केर आने पैर जिस पद पैर दुबारा बढ़ने से पेर्हजे किया था उसी राष्ट्रिय एकता परिषद् के अध्यक्छ की कुर्सी पैर नहीं बाधती जब की उनके पास सत्ता को निर्देशित करने के पुरे अधिकार है/ विरोधियो का कगना सहिप्रतित होता है की २००४ में मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे वही आशंका थी की आगे चल केर फिर ऐसी स्थिति आ सकती है.उसके बाद ही राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार के रूप में आगे किया गया, नहीं तो १० जनपथ के पि एम्. ओ. से अधिक प्रभावशाली होने के बाद भी अस्म्वाधानिक पद जो प्रधान मंत्री के अधिकारों का हनन तथा गरिमा को गिराने ली आवश्यकता ही क्यों पड़ती इस तरह सोनिया के त्याग की देवी की प्रतिमा भिखंडित हो जाती है.उनकी म्हणता की असलियत यही है.इसी लिए मूल्य सिंह को सोते जागते भूल नहीं पति जो उनके महत्य्व्कंच के पूरा होने के आगे दिवार बन केर खड़े हुए थे और गाँधी ख़ानदान को अपमान न भुलाने के लिए जाना जाता है.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh